Tuesday 23 May 2017


[22/05 22:22] ‪+91 99991 79169‬: *क्यों न आज गमो को,* *बेवकूफ बनाया जाय...!* *दर्द कितना भी हो,* *जम के मुस्कराया जाय...!!* [22/05 22:22] ‪+91 99991 79169‬: *पलकों की हद को तोड़ के दामन पे आ गिरा* *एक आंसू मेरे सब्र की तौहीन कर गया..!!* [22/05 22:22] ‪+91 99991 79169‬: *बहुत सा पानी छुपाया है मैंने अपनी पलकों में..* *जिंदगी लम्बी बहुत है,क्या पता कब प्यास लग जाए...🎭* [22/05 22:23] ‪+91 99991 79169‬: *दिल से बड़ी कोई क़ब्र नहीं है,* *रोज़ कोई ना कोई* *एहसास दफ़न होता है...॥* 😒 😔

Monday 22 May 2017

दो ही गवाह थे मेरी वफ़ा के........ वक्त और वो...... एक गुज़र गया दूसरा मुकर गया.. * आज गुमनाम हूँ तो ज़रा* *फासला रख मुझसे.....!* *lकल फिर मशहूर हो जाऊँ तो* *कोई रिश्ता निकाल लेना...!* *कौन कहता है के तन्हाईयाँ अच्छी नहीं होती...* *बड़ा हसीन मौका देती है ये ख़ुद से मिलने का...*

Friday 19 May 2017

*ज़िन्दगी ये तेरी खरोंचे हैं मुझ पर*

*या फिर तू मुझे तराशने की कोशिश में है.…???*😥😥

Wednesday 17 May 2017

दिलासा देता रहता है अच्छा नहीं लगता
वादा करके मुकरताहै सच्चा नहीं लगता

साथ मौसम के वोभी सदा रंग बदलता है
जज़्बातों से खेलता है अच्छा नहीं लगता

वक़्त के साथ आती हैसलाहियत इंसा में
वो बहोत दूर है इस से अच्छा नहीं लगता

वो एक नज़र से देखेगा उम्मीद थी सबको
सदा नज़रें फेर लेता है सच्चा नहीं लगता

ख्वाबों में रहने का गुज़र चुका ज़माना है
जाग उठा है इन्सां अब बच्चा नहीं लगता

घुटना मुड़ता है पेट की तरफ सच लेकिन
वो तो पूरा झुक गया है अच्छा नहीं लगता

करे किस पे यक़ीं इंसां हर कोई बिकता है
जो अच्छा लगता है वो सच्चा नहीं लगता
ख्वाजा मसूद हसन "मसूद"
*तेरे गिरने में, तेरी हार नहीं ।*
*तू आदमी है, अवतार नहीं ।।*
*गिर, उठ, चल, दौड, फिर भाग,*
*क्योंकि*
*जीत संक्षिप्त है इसका कोई सार नहीं ।।**🌴🌻🌻🌴*
       
         *वक्त  तो  रेत  है*
     *फिसलता  ही  जायेगा*
     *जीवन  एक  कारवां   है*
     *चलता  चला  जायेगा*
     *मिलेंगे  कुछ खास*
     *इस  रिश्ते  के  दरमियां*
     *थाम  लेना  उन्हें  वरना*
     *कोई  लौट  के  न  आयेगा*
         
  *सुबह का प्रणाम  सिर्फ रिवाज़ ही नही बल्कि आपकी फिक्र का एहसास भी है...*
*रिश्ते जिन्दा  रहें और यादें भी बनी रहे...*
           
   

       
                   
 
                      

Friday 12 May 2017

ख़्वाब आँखों में, होठों पे बागबां रखते थे हम
एक दौर था मुट्ठी में आसमां रखते थे हम.
मायूस जिसके दर से कोई परिंदा नहीं लौटा,
ख़ुद में जिंदादिली का वो मकां रखते थे हम.
किसी गिले का शिकन कभी चेहरे पे न रहा
मासूमियत की वो कोरी दास्तां रखते थे हम.
तब ज़िन्दगी कुछ इतनी संजीदा भी नहीं थी
हर कदम पे शौक से इम्तेहां रखते थे हम.
तन्हा रात में वो शामें बहुत याद आती हैं
जब साथ हर कदम पे कारवां रखते थे हम।

Tuesday 9 May 2017

*कभी_कभी लगता है क़ि....ज़िन्दगी कुछ_कुछ ख़फ़ा है..!*

*फ़िर ये सोच लेते हैं क़ि..*

*अजी छोड़िये भी........*
*ये कौन सा पहली दफ़ा है..!!*