sher
Tuesday 23 May 2017
Monday 22 May 2017
Friday 19 May 2017
Wednesday 17 May 2017
दिलासा देता रहता है अच्छा नहीं लगता
वादा करके मुकरताहै सच्चा नहीं लगता
साथ मौसम के वोभी सदा रंग बदलता है
जज़्बातों से खेलता है अच्छा नहीं लगता
वक़्त के साथ आती हैसलाहियत इंसा में
वो बहोत दूर है इस से अच्छा नहीं लगता
वो एक नज़र से देखेगा उम्मीद थी सबको
सदा नज़रें फेर लेता है सच्चा नहीं लगता
ख्वाबों में रहने का गुज़र चुका ज़माना है
जाग उठा है इन्सां अब बच्चा नहीं लगता
घुटना मुड़ता है पेट की तरफ सच लेकिन
वो तो पूरा झुक गया है अच्छा नहीं लगता
करे किस पे यक़ीं इंसां हर कोई बिकता है
जो अच्छा लगता है वो सच्चा नहीं लगता
ख्वाजा मसूद हसन "मसूद"
वादा करके मुकरताहै सच्चा नहीं लगता
साथ मौसम के वोभी सदा रंग बदलता है
जज़्बातों से खेलता है अच्छा नहीं लगता
वक़्त के साथ आती हैसलाहियत इंसा में
वो बहोत दूर है इस से अच्छा नहीं लगता
वो एक नज़र से देखेगा उम्मीद थी सबको
सदा नज़रें फेर लेता है सच्चा नहीं लगता
ख्वाबों में रहने का गुज़र चुका ज़माना है
जाग उठा है इन्सां अब बच्चा नहीं लगता
घुटना मुड़ता है पेट की तरफ सच लेकिन
वो तो पूरा झुक गया है अच्छा नहीं लगता
करे किस पे यक़ीं इंसां हर कोई बिकता है
जो अच्छा लगता है वो सच्चा नहीं लगता
ख्वाजा मसूद हसन "मसूद"
*तेरे गिरने में, तेरी हार नहीं ।*
*तू आदमी है, अवतार नहीं ।।*
*गिर, उठ, चल, दौड, फिर भाग,*
*क्योंकि*
*जीत संक्षिप्त है इसका कोई सार नहीं ।।**🌴🌻🌻🌴*
*वक्त तो रेत है*
*फिसलता ही जायेगा*
*जीवन एक कारवां है*
*चलता चला जायेगा*
*मिलेंगे कुछ खास*
*इस रिश्ते के दरमियां*
*थाम लेना उन्हें वरना*
*कोई लौट के न आयेगा*
*सुबह का प्रणाम सिर्फ रिवाज़ ही नही बल्कि आपकी फिक्र का एहसास भी है...*
*रिश्ते जिन्दा रहें और यादें भी बनी रहे...*
*तू आदमी है, अवतार नहीं ।।*
*गिर, उठ, चल, दौड, फिर भाग,*
*क्योंकि*
*जीत संक्षिप्त है इसका कोई सार नहीं ।।**🌴🌻🌻🌴*
*वक्त तो रेत है*
*फिसलता ही जायेगा*
*जीवन एक कारवां है*
*चलता चला जायेगा*
*मिलेंगे कुछ खास*
*इस रिश्ते के दरमियां*
*थाम लेना उन्हें वरना*
*कोई लौट के न आयेगा*
*सुबह का प्रणाम सिर्फ रिवाज़ ही नही बल्कि आपकी फिक्र का एहसास भी है...*
*रिश्ते जिन्दा रहें और यादें भी बनी रहे...*
Friday 12 May 2017
ख़्वाब आँखों में, होठों पे बागबां रखते थे हम
एक दौर था मुट्ठी में आसमां रखते थे हम.
मायूस जिसके दर से कोई परिंदा नहीं लौटा,
ख़ुद में जिंदादिली का वो मकां रखते थे हम.
किसी गिले का शिकन कभी चेहरे पे न रहा
मासूमियत की वो कोरी दास्तां रखते थे हम.
तब ज़िन्दगी कुछ इतनी संजीदा भी नहीं थी
हर कदम पे शौक से इम्तेहां रखते थे हम.
तन्हा रात में वो शामें बहुत याद आती हैं
जब साथ हर कदम पे कारवां रखते थे हम।
एक दौर था मुट्ठी में आसमां रखते थे हम.
मायूस जिसके दर से कोई परिंदा नहीं लौटा,
ख़ुद में जिंदादिली का वो मकां रखते थे हम.
किसी गिले का शिकन कभी चेहरे पे न रहा
मासूमियत की वो कोरी दास्तां रखते थे हम.
तब ज़िन्दगी कुछ इतनी संजीदा भी नहीं थी
हर कदम पे शौक से इम्तेहां रखते थे हम.
तन्हा रात में वो शामें बहुत याद आती हैं
जब साथ हर कदम पे कारवां रखते थे हम।
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